8.11.16

Sheher



कुछ नही होता शहर बदलने से
माँ कहा करती थीं
शहर बदलने से लोगों की तासीर नही बदल जाती

वो होता है ना ऐसे
जब चन्द किलोमेटेर दूर ही
ऐसा लगता है की शहर बदल गया


तुम और मैं थोड़ा सा चलें
और पहुच जायें किसी दूसरे शहर
जहाँ हम अजनबी
और हमारी किसी से जान पहचान ना हो

क्यूंकी मुझे पता है क्या होता है शहर बदलने से
जैसे धूप पड़ने से चेहरे का रंग बदल जाता है
या जैसे पानी में जाने से त्वचा गल जाती है

शहर बदलने से सतह के नीचे का आदमी
अपने आप ही उपर आ जाता है
वो होता है ना ऐसे

जब चन्द किलोमेटेर दूर ही
ऐसा लगता है की शहर बदल गया
दूरी का मेहेz एहसास ही होने से

बदलता कुछ नहीं
माँ सही ही कहती थीं
पर सतह पर आता है कोई और

और हम मिलतें हैं
उन्ही परतों से
जब हमें लगता है की शहर बदल गया

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