21.6.15

Untitled



वो किताब बार बार एक ही पन्ने पर खुल कर
टकटकी लगाए, इंतेज़ार करती रहती है
खिड़की से हवा के आते ही
मानो वो किताब का हर पन्ना
उस एक बदनाम पन्ने को धकेल कर
छत ताकने पर मजबूर करे बिना नही मानता

पर उस पन्ने को कोई याद नही रखना चाहता
उसके कान मोड़ कर
कोई बुकमार्क भी नही करना चाहता

मानो की, उस पन्ने को कोई तभी पढ़ना चाह सकता है
जब वो अपने आप खुल के आँखों के सामने आ बैठे

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