शब्दों को मरोड़ कर
उनका सत् निकाल कर
गड्ड गड्ड पीया जा सकता है
छाननी में छूटे हुए
फूस की तरह पड़े शब्दों को
फूस की तरह पड़े शब्दों को
ग्रीटिंग कार्ड पे
रिसाइकल भी किया जा सकता है
रिसाइकल भी किया जा सकता है
उन्हे उबाल कर
नींबू से फाड़ कर
समय और तापमान का सही तालमेल बैठा कर
दही भी जमाया जा सकता है
पर मैं चाहती हूँ कुछ ऐसा
जैसे दही में चीनी मिला दी हो
की शब्दों की तासीर ही बदल जाए
नेरूदा के चेररी ब्लॉसम के पेड़ के साथ
बसंत की छेड़खानी की तरह
बसंत की छेड़खानी की तरह
या एलीयट के आते जाते
माइकलएंजेलो की बात करते लोगों की तरह
माइकलएंजेलो की बात करते लोगों की तरह
ऐसे शब्द जिनको कह देने के बाद
कुछ असर दिखे
बस नापा ना जा सके
…
मेरी दादी के बड़े पेट की तरह
जो मेरी बहन और मेरे बीच बँटता
लिपट जाते हम
एक तरफ मैं तो दूसरी तरफ वो
एक तरफ मैं तो दूसरी तरफ वो
पर मेरी दादी के पेट का शब्दों से क्या करना
उसकी गुड गुड आवाज़ में थोड़े ना कोई रस या अलंकार छुपे थे
पर चार फीट की खाट पे
मेरी दादी, उनका पेट और हम दोनो,
ऐसे फिट हो जाते
जैसे कुछ शब्द, कविता में हो जाते हैं
जैसे कुछ शब्द, कविता में हो जाते हैं